किसका नाम कबीर ...
कवि, समाज सुधारक, उपदेशक, भक्त, दास, धार्मिक नेता, कर्ममार्गी, भक्तिमार्गी, ज्ञानमार्गी, दार्शनिक, रहस्यवादी, गृहस्थ, सन्यासी, आदि...?* यदि तर्क की दृष्टि से विचार करे तो पायेंगे की सद्गुरु कबीर साहब इनमें से किसी एकमात्र विश्लेषण या पद के अधिकारी नहीं बल्कि सब कुछ थे, उनके लिए इनमे से कोई भी शब्द इतना साँचा नहीं या पर्याप्त नहीं की कबीर को सीमित किया जा सके ..... डाo श्यामसुंदर शुक्ल
* आमतौर पर जनमानस, सद्गुरु कबीर साहब को संत या कवि, या कोई विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुआ या जुलाहा के घर मे पालन पोषण होने से जुलाहा जैसा हमारे पाठ्यपुस्तक में भ्रमित जानकारी दी गई हैं पढ़ाया जाता हैं, उतना ही ज्ञात होता है, (पाठ्यपुस्तक को छापने वाले उस विधवा ब्राह्मणी का नाम क्या था उनके नाम भी क्यों नहीं लिखते ) यह धूर्त पाखंडियो की चाल थी,यह तो सर्वविदित है की जिसे ज्ञान से न हरा सको तो बदनाम कर दो, सद्गुरु कबीर साहब ने तो सबसे अधिक पाखण्ड और कर्मकाण्ड पर ही प्रहार किया हैं
* जिसने सद्गुरु कबीर साहब को जैसा देखा वैसा कह दिया, यह ठीक वैसे ही जैसे किसी विशालकाय हांथी को चार अन्धे से पूछा गया की हांथी कैसा हैं, तो जो अंधा पुंछ पकड़ा वह कह दिया- रस्सी जैसा, पैर पकड़ा वह अंधा कह दिया- खंबे जैसा, पेट को पकड़ा वह अंधा कह दिया- दीवाल जैसा, और कान को पकड़ा वह अंधा कह दिया- सूपा(सुपड़ा) जैसा, और सभी जिद्द कर रहे हैं मै जो कह रहा हु वही सत्य है.
* सतगुरु कबीर साहब ने अपने परम ज्ञान को कहकर ही समझाया l अपने अनुभैविक ज्ञान की अभिव्यक्ति के लिए उन्होने “मसि कागज” की आवश्यकता नहीं समझी “मसि कागज छूओ नहीं , कलम गहौ नहीं हाथ” की बात को लेकर कुछ हिन्दी साहित्य के आलोचको ने उन्हे अपढ़ कहने का साहस किया हैं l मसि कागज की आवश्यकता नहीं समझने से सतगुरु कबीर साहब तो अपढ़ नहीं हुए बल्कि उन्हे अपढ़ कहने वाले की समझ की कितनी गहराई हैं – यह बात स्वतः स्पष्ट हो गई l भगवान कृष्ण, बुद्ध, महावीर, जीसस आदि परम ज्ञानी महापुरुषों ने भी मसि कागज की आवश्यकता नहीं समझी थी l आलोचको के विवेकानुसार वे सभी अनपढ़ रहे होंगे – किन्तु ऐसा समझना केवल अपने को ही अनपढ़ होने का दावा सिद्ध करना हैं ..... पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब , आचार्य कबीरपंथ
* सत्य को निर्भीकता से कहने का नाम ही कबीर है ...पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब, आचार्य कबीर पंथ
* आज विश्वसमुदाय को सद्गुरु कबीर साहब को पूर्ण रूप से देखने की जरूरत है, हम सिर्फ कवि, जुलाहा, आदि मात्र रूप में देखते है तो हम अन्धमात्र हैं
सद्गुरु कबीर साहब ने कहा ही हैं –
मैं किही समझाऊ सब जग अंधा, एक दुई होय तोय समझाऊ,
सब ही भुलाना पेट के धंधा...
*********************************
* जिसने सद्गुरु कबीर साहब को पूर्ण रूप में देखा उन महान संतो ने क्या कहा....
बाजा बाजे रहित का, परा नगर में शोर l
सद्गुरु खसम कबीर हैं, मोहि नजर न आवे और ll ...धनी धर्मदास साहब
बानी अरब न खरब लो , ग्रंथा कोटि हजार l
कर्ता पुरुष कबीर हैं , नाभा किया विचार ll …संत नाभा जी
यक अर्ज गुफ़तम पेश तू, दर गोश कुन करतार l
हक्का कबीर करीम तू वे ऐब परवर दिगार ll ...नानक शाह
साँचा शब्द कबीर का, युग युग अटल अमूल l
दादू पावे पारखू, परम पुरुष निज मूल ll …संत दादू साहब
जपौ रे भाई सद्गुरु नाम कबीर ll …संत मूलकदास जी
कर्ता तुम ही साधू हो, सत कबीर हो देव l
तन मन तुमको अर्पिहौं, कुल दिक्षा मोहि देव ll ...स्वामी रमानन्द
******************************
(सद्गुरु कबीर साहब के इस धरती पर आने का कोई भेद मर्म नहीं समझ पाया)
साहब की वाणी है ....
* अब हम अविगत से चलि आये , कोई भेद मरम न पाये ।।
ना हम जन्मे गर्भ बसेरा , बालक होय दिखलाये ।
काशी शहर जलहि बीच डेरा , तहां जुलाहा पाये ।।
हते विदेह देह धरि आये , काया कबीर कहाये ।
वंश हेत हंसन के कारण , रामानन्द समुझाये ।।
ना मोरे गगन धाम कछु नाहीं, दिसत अगम अपारा।
शब्द स्वरूपी नाम साहब का , सोई नाम हमारा ।।
ना हमरे घर मात पिता है , नाहि हमरे घर दासी ।
जात जुलाहा नाम धराये , जगत कराये हाँसी ।।
ना मोरे हाड़ चाम ना लोहू , हौं सत्यनाम उपासी ।
तारन तरन अभय पद दाता, कहैं कबीर अविनाशी ।।
उपरोक्त भजन / पद में साहेब जी के प्रगट के विषय में सब कुछ स्पष्ट है कि कबीर साहेब ना ही गर्भ से जन्मे है न ही उनकी पत्नी है। उनकी पांच तत्व की देह भी नहीं है और वो स्वयं सत्यपुरुष परमात्मा अविनाशी हैं ।
*******************************
साहेब बंदगी साहेब
No comments:
Post a Comment