चादर हो गई बहुत पुरानी, अब तो सोच समझ अभिमानी ।टेक।
अजब जुलाहा चादर बीनी ,सूत करम की तानी ।
सुरत निरति का भरना दीनीे, तब सबके मन मानी ।।1
मैले दाग पड़े पापन के ,विषयन में लपटानी ।
ज्ञान का साबुन लाय न धोया, सत्संगति का पानी ।।2।।
भई खराब गई अब सारी, लोभ मोह में सानी ।
सारी उमर ओढ़ते बीती , भली बुरी नहीं जानी ।।3।।
शंका मानी जान जिय अपने , है यह वस्तु बिरानी ।
कहैं कबीर यहि राखू यतन से , ये फिर हाथ ना आनी।।4।।
शब्दार्थ :-चादर = शरीर । जुलाहा मन मनवशीजीव । सुरती= मनोवृति । निरति = लिनता ।शंका = संदेह, संशय, भय ।
भावार्थ :- हे जीव। अनादिकाल से शरीर चादर ओढते ओढते यह बहुत पुरानी हो गई है । इसके ओढने की तेरी तृष्णा अभी भी नहीं मिट रही है । हे मिथ्या देहाभिमानी। अब तो इसकी असारता और दुखरुपता को समझ और इससे छूटने के लिए विचार कर । यह मनवशी जीव अद्भुत जुलाहा है यह कर्मों का सूत कातकर शरीर चादर बनता है।
परंतु किसी को भी संतोष तब होगा जब मन स्थिर होगा जब सूरत निरत का इस शरीर चादर में भरना दिया जाएगा जैसे कपड़ा बुनते समय ताना तान लेने के बाद शुत की आरी आरी भरनी दी जाती है । तब कपड़ा की पूर्णता होती है वैसे ही शरीर धारण की सफलता तब होती है जब सूरति स्वरूप में लीन होती है । सुरति निरति का भरना देना सही है। सूरति आत्मा में निरत हो, लीन हो तब शरीर चादर की सफलता है।
इस शरीर तथा मन की चादर में विषयासक्तिजनित पाप एवं मलिनता के दाग लगे हैं , क्योंकि हम सदैव से विषयों में ही लिपटे रहे। हमारी यह भयंकर असावधानी रही है कि हम स्वरूप आत्मज्ञान रूपी साबुन सद्गुरु से लेकर सत्संग के पानी में उसे नहीं धोए।
यह शरीर चादर खराब होती गई काम क्रोध लोभ आदि में सनकर यह पूरी की पूरी चौपट हो गई है।
आदमी इतना दम व्यामोहित है कि पूरी उम्र इस शरीर चादर को ओढते बित जाती है। किंतु वह नहीं समझ पाता कि अच्छा क्या है? और बुरा क्या है? कल्याण क्या है ? अकल्याण क्या है? जीव की अशांति कैसे मीलती है? और शांति कैसे मिलेगी?
हृदय में यह पक्का समझ लो कि यह शरीर चादर तुम्हारी अपनी नहीं है । यह विजाती है ,नशवान है ,इसलिए सावधान हो जाओ।
सदगुरु कबीर साहेब कहते हैं कि हे जीव इसको साधना से संयमित रखो तो , शांति का मीठा फल मिलेगा। और जीव को चेताते हुए कहते हैं की खबरदार यह आजकल में खो जाएगा फिर हाथ लगने वाली नहीं है ।
विशेष:-- यह स्वस्थ शरीर और यह प्रकृति की सुविधाएं आजकल में छिन जाने वाले हैं । इसलिय शीघ्र किसी सच्चे सद्गुरु के पास जाकर अपने मन इंद्रियों पर संयम कर अपना कल्याण कर लेना चाहिए
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