Thursday, 21 December 2017

जो खुदाय महजीद बसतु है, और मुलुक केहि केरा । तीरथ मूरत राम निवासी, दुइमा किनहुँ न हेरा ।। कबीर


जो खुदाय महजीद बसतु है, और मुलुक केहि केरा ।
तीरथ मूरत राम निवासी, दुइमा किनहुँ न हेरा ।।

हिन्दू और मुसलमान मंदिर और मस्जिद को लेकर बड़ा लट्ठमलट्ठ करते रहते हैं । ये दोनों कहीं-कहीं कुछ ईंट-पत्थर के रोड़े जोड़ लेते हैं, और इनके ईश्वर वहां आकर जम जाते हैं फिर चाहे उनको लेकर इन्सान के खून की नदी बहे तो भी इनके ईश्वर वहां से नहीं हटते ।

 ये हिन्दू और मुसलमान के ईश्वर और देवी-देवता कितनी सार्वजनिक जमीनों पर, किन्हीं की व्यक्तिगत जमीनों पर, राहों और सड़कों पर ऐसे जमकर बैठते हैं कि मजाल है इन्हें कोई हटा सके । भले जनता को, राहगीरों को कष्ट हो, परंतु ये वहां से नहीं हटेंगे ।

यदि कहीं सरकार इन्हें हटाना चाहे तो धर्म और इस्लाम खतरे में है कहकर नारे लगाये जाते हैं, सरकार की छवि खराब करने का प्रयत्न किया जाता है । कितने ही मंदिर और मस्जिद इन्सानी-दोस्ती की राह में रोड़े ही नहीं खाई और पर्वत बनकर खड़े हो जाते हैं ।

इतना ही नहीं, इनको लेकर मैदाने-जंग में इंसान का खून भी बहने लगता है । ईश्वर और देवता को रहने की जगह न मिलने से ये दयावान हिन्दू और मुसलमान उनके लिए मंदिर और मस्जिद बनाते हैं तब कहीं बेचारे ईश्वर और देवता अपने सिर छिपाने की जगह पाते हैं ।

साहेब कहते हैं कि यदि खुदा मस्जिद में रहता है तो मस्जिद के बाहर के मुल्क में कौन रहता है? क्या उसमें शैतान रहते हैं? और यदि तीर्थ, मंदिर तथा मूर्तियों में ईश्वर तथा देवता रहते हैं तो उनसे बाहर के संसार में कौन रहता है? इतनी-सी अक्ल लोगों में नहीं आ रही है ।

ईश्वर का असली स्थान न हिन्दू खोजते हैं और न मुसलमान खोजते हैं । जो इन्सान से लेकर सूक्ष्म कीट तक के दिलों में बसा है उसे ये मंदिर-मस्जिद की दीवारों के बीच में बन्द कर देना चाहते हैं ।

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