बन्दे जाग भई अब भोर।
बहुत सोया जन्म खोया ,यहां नहीं कोई तोर।
लोभ मोह अहंकार तृष्णा, संग लिन्हे कोर।।
पछिताहुगे आदि-अंत से ,जइयो कौनी ओर ।
जठर अग्नि सो तोही उबारा ,रक्षा किन्हीं तोड़।।
एक पलक तुम राम ना सुमरो, बड़ा हरामीखोर।
बार बार समुझाई देखा, कहा न मानैे मोर।।
कहे कबीर सुनो हो साधो, ध्रिक जीवन जग तोर।।
:-सतगुरु कबीर साहेब शब्द वाणी
भावार्थ:-माया मोह की नींद में सोए हैं अचेत मनुष्य जाग जा अब तो तेरी दुर्लभ मनुष्य जन्म की ज्ञान मई सुबह हो गई है ।
अनादि काल से जन्म जन्म तू माया मोह की नींद में बहुत सोया और अपना जन्म व्यर्थ ही खोया अब तू सावधान हो जा समझ ले कि यहां तेरा कोई अपना नहीं है।
लोभ मोह अहंकार एवं तृष्णा आदि विषय दोष तू अपने संग लोध में लिए फिरता है जिनसे तुझे कभी सुख शांति नहीं मिलेगी।
फिर तू आदि से लेकर अंत तक पछताएगा अपने किए कर्मों को लेकर तू किस ओर जाएगा उनका फल तुझे अवश्य भुगतना पड़ेगा।
तू बरा कर्महीन और कृतध्न है, जो बिना धर्म कर्म किए सुखभोग चाहता है । जिसने तुझे मां की गर्भअग्नि से उबारा और हर प्रकार से तेरी रक्षा की उस अंतर्यामी परमात्मा राम जो तेरे अंदर ही विराजमान है का तू एक पल भी सिमरन नहीं करता है।
भरम भूल में भटके हे मनुष्य ।तुझे बार-बार समझा कर देखा , परंतु तू मेरा कहना नहीं मानता।
सदगुरु कबीर साहेब जी अंत में कहते हैं कि हे साधो सुनो ऐसे मनुष्य के जीवन को धिक्कार है जो कल्याणकारी बात को समझाने पर भी नहीं समझता है।
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