Saturday, 30 December 2017

किसका नाम कबीर ?


किसका नाम कबीर ...

      कवि, समाज सुधारक, उपदेशक, भक्त, दास, धार्मिक नेता, कर्ममार्गी, भक्तिमार्गी, ज्ञानमार्गी, दार्शनिक, रहस्यवादी, गृहस्थ, सन्यासी, आदि...?
     * यदि तर्क की दृष्टि से विचार करे तो पायेंगे की सद्गुरु कबीर साहब इनमें से किसी एकमात्र विश्लेषण या पद के अधिकारी नहीं बल्कि सब कुछ थे, उनके लिए इनमे से कोई भी शब्द इतना साँचा नहीं या पर्याप्त नहीं की कबीर को सीमित किया जा सके ..... डाo श्यामसुंदर शुक्ल
     * आमतौर पर जनमानस, सद्गुरु कबीर साहब को संत या कवि, या कोई विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुआ या जुलाहा के घर मे पालन पोषण होने से जुलाहा जैसा हमारे पाठ्यपुस्तक में भ्रमित जानकारी दी गई हैं पढ़ाया जाता हैं, उतना ही ज्ञात होता है, (पाठ्यपुस्तक को छापने वाले उस विधवा ब्राह्मणी का नाम क्या था उनके नाम भी क्यों नहीं लिखते ) यह धूर्त पाखंडियो की चाल थी,यह तो सर्वविदित है की जिसे ज्ञान से न हरा सको तो बदनाम कर दो, सद्गुरु कबीर साहब ने तो सबसे अधिक पाखण्ड और कर्मकाण्ड पर ही प्रहार किया हैं
     * जिसने सद्गुरु कबीर साहब को जैसा देखा वैसा कह दिया, यह ठीक वैसे ही जैसे किसी विशालकाय हांथी को चार अन्धे से पूछा गया की हांथी कैसा हैं, तो जो अंधा पुंछ पकड़ा वह कह दिया- रस्सी जैसा, पैर पकड़ा वह अंधा कह दिया- खंबे जैसा, पेट को पकड़ा वह अंधा कह दिया- दीवाल जैसा, और कान को पकड़ा वह अंधा कह दिया- सूपा(सुपड़ा) जैसा, और सभी जिद्द कर रहे हैं मै जो कह रहा हु वही सत्य है.
     * सतगुरु कबीर साहब ने अपने परम ज्ञान को कहकर ही समझाया l अपने अनुभैविक ज्ञान की अभिव्यक्ति के लिए उन्होने “मसि कागज” की आवश्यकता नहीं समझी “मसि कागज छूओ नहीं , कलम गहौ नहीं हाथ” की बात को लेकर कुछ हिन्दी साहित्य के आलोचको ने उन्हे अपढ़ कहने का साहस किया हैं l मसि कागज की आवश्यकता नहीं समझने से सतगुरु कबीर साहब तो अपढ़ नहीं हुए बल्कि उन्हे अपढ़ कहने वाले की समझ की कितनी गहराई हैं – यह बात स्वतः स्पष्ट हो गई l भगवान कृष्ण, बुद्ध, महावीर, जीसस आदि परम ज्ञानी महापुरुषों ने भी मसि कागज की आवश्यकता नहीं समझी थी l आलोचको के विवेकानुसार वे सभी अनपढ़ रहे होंगे – किन्तु ऐसा समझना केवल अपने को ही अनपढ़ होने का दावा सिद्ध करना हैं ..... पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब , आचार्य कबीरपंथ
   * सत्य को निर्भीकता से कहने का नाम ही कबीर है ...पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब, आचार्य कबीर पंथ
     * आज विश्वसमुदाय को सद्गुरु कबीर साहब को पूर्ण रूप से देखने की जरूरत है, हम सिर्फ कवि, जुलाहा, आदि मात्र रूप में देखते है तो हम अन्धमात्र हैं
सद्गुरु कबीर साहब ने कहा ही हैं –
मैं किही समझाऊ सब जग अंधा, एक दुई होय तोय समझाऊ,
सब ही भुलाना पेट के धंधा...
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    * जिसने सद्गुरु कबीर साहब को पूर्ण रूप में देखा उन महान संतो ने क्या कहा....
बाजा बाजे रहित का, परा नगर में शोर l
सद्गुरु खसम कबीर हैं, मोहि नजर न आवे और ll ...धनी धर्मदास साहब
बानी अरब न खरब लो , ग्रंथा कोटि हजार l
कर्ता पुरुष कबीर हैं , नाभा किया विचार ll …संत नाभा जी
यक अर्ज गुफ़तम पेश तू, दर गोश कुन करतार l
हक्का कबीर करीम तू वे ऐब परवर दिगार ll ...नानक शाह
साँचा शब्द कबीर का, युग युग अटल अमूल l
दादू पावे पारखू, परम पुरुष निज मूल ll …संत दादू साहब
जपौ रे भाई सद्गुरु नाम कबीर ll …संत मूलकदास जी
कर्ता तुम ही साधू हो, सत कबीर हो देव l
तन मन तुमको अर्पिहौं, कुल दिक्षा मोहि देव ll ...स्वामी रमानन्द
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(सद्गुरु कबीर साहब के इस धरती पर आने का कोई भेद मर्म नहीं समझ पाया)
साहब की वाणी है ....
* अब हम अविगत से चलि आये , कोई भेद मरम न पाये ।।
ना हम जन्मे गर्भ बसेरा , बालक होय दिखलाये ।
काशी शहर जलहि बीच डेरा , तहां जुलाहा पाये ।।
हते विदेह देह धरि आये , काया कबीर कहाये ।
वंश हेत हंसन के कारण , रामानन्द समुझाये ।।
ना मोरे गगन धाम कछु नाहीं, दिसत अगम अपारा।
शब्द स्वरूपी नाम साहब का , सोई नाम हमारा ।।
ना हमरे घर मात पिता है , नाहि हमरे घर दासी ।
जात जुलाहा नाम धराये , जगत कराये हाँसी ।।
ना मोरे हाड़ चाम ना लोहू , हौं सत्यनाम उपासी ।
तारन तरन अभय पद दाता, कहैं कबीर अविनाशी ।।
उपरोक्त भजन / पद में साहेब जी के प्रगट के विषय में सब कुछ स्पष्ट है कि कबीर साहेब ना ही गर्भ से जन्मे है न ही उनकी पत्नी है। उनकी पांच तत्व की देह भी नहीं है और वो स्वयं सत्यपुरुष परमात्मा अविनाशी हैं ।
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 साहेब बंदगी साहेब

Friday, 22 December 2017

सुन्नत नमाज,पूजा, जनेऊ धारण, देवी देवता में विश्वास आदि को निरर्थक बताकर कहीं कबीर साहेब भोतिक वाद की पुष्टि तो नहीं कर रहे है?


सुन्नत
नमाज,पूजा, जनेऊ धारण, देवी देवता में विश्वास आदि को निरर्थक बताकर कहीं कबीर साहेब भोतिक वाद की पुष्टि तो नहीं कर रहे है?

समाधान:- भौतिकवाद जिसे चार्वाक का सिद्धान्त भी कहते हैं, उसमें भोतिक जड तत्वों के अतिरिक्त अन्य किसी शक्ति को नहीं माना गया हैं।भौतिकवाद के अनुसार जीवन मात्र जड तत्वों का संयोग है और कुछ नहीं।जिस प्रकार चकमक और पथरी के घर्षण से आग उत्पन्न होती है, उसी प्रकार पंच तत्वों के विशेष संयोग से जीव की उत्पत्ति होती है, और तत्वों का संयोग समाप्त होते ही जीव भी समाप्त हो जाता है। उसे न तो पुन: शरीर धारण करना है और न ही मरना है।जब तक जियो मौज मस्ति करो, उधार लेकर घी पिओ।यही है भौतिकवाद।
अब तक के शंका समाधान में जो विवरण प्रस्तुत किये गये हैं, क्या उनमें कहीं भी जीव अथवा आत्मा का निषेध किया गया है? फिर आपको किस आधार पर यह शंका हुई की सद्गुरू कबीर भौतिकवाद का निरूपण कर रहे हैं।
वस्तुत: आध्यात्मिक आध्यात्मिक क्षैत्र में कोई भी विचार या सिद्धान्त मानने से पूर्व उसे पूर्ण विवेक के साथ सत्य की कसौटी पर कसा जानि चाहिये और जब तक खरा नहीं उतरे, ऊसे स्वीकार नहीं करना चाहिये। इसीलिय सद्गुरू कबीर कहतै हैं कि परखो परखो, बिना परखे किसी की बात को स्वीकार न करो।रमैणी संख्या-40 में सद्गुरू कबीर कहते है की-

आदम आदि सुधि नहीं पाई, मां मां हवा कहां से आई।
तब नहीं होते तुरुक औ हिन्दू, गाय के रुधिर पिता के बिन्दू।
तब नहीं होते गाय कसाई, तब बिसमिल्ला किन फुरमाई।
तब नहीं होते कुल और जाति, दोजख बिहिस्त कौन उत्पाति।
मन मसले की सुधि नहिं जाना, मति भुलान दुई दीन बखाना।
संजोगे का गुण रवे, बिजोगे का गुण जाय।
जिभ्या स्वार्थ कारणे,नर कीन्हे बहुत ऊपाय।।40।।

भावानुवाद:-
नर तूने कैसा मता उपाया।
न्यारे न्यारे ईश उपाये, राम रहीम कहाया।।टेक।।
एक बूंद से सृष्टि रची है, दीन दुई क्यूं गाया।
मां मां हव्वा कहां से आई, आदम जान न पाया।।1।।
हिन्दू तुरुक नहीं जब होते, जाति कुल न बनाया।
गाय कसाई दोऊ नहीं होते, बिस्समिल किन फुरमाया।।2।।
मन मसले की सुधि नहीं पाई, नाहक द्वंद मचाया।
"तारा चंद" निज स्वार्थ कारण, जग झगडा फैलाया।।3।।

भावार्थ;- आदम को स्वयम् अपने जन्म का पता नहीं था और न ही वह जान पाया कि उसकी पत्नि हव्वा कहां से आई? सृष्टि के आदि में जब न तो हिन्दू थे न मुसलमान, और न रज थी न वीर्य।गाय भी नहीं थी, तब बिस्मिल्ला कहकर किसने जीव वध की आज्ञा दी होगी।

उस समय न तो कुल थे और न ही वर्ण व्यवस्था, फिर नरक स्वर्ग 
का निर्धारण किसने किया।वस्तुत: लोग अपनी कल्पित बातों को स्वयं नहीं जान पाये।इसलिए उनकी बुद्धि भ्रमित हो गयी और वे दो दीन की कल्पना कर बैठे।

भौतिक वाद भी ऐसे ही भ्रमित लोगों का ज्ञान है, जो यह मानते है की  आत्मा जीव मात्र पंच तत्वों का संयोग है और उसका वियोग होंने पर जीव गुण समाप्त हो जाता है।इसलिय जीव नाम कोई वस्तु नहीं है।मानव ने अपनी जिभ्या के स्वाद हेतु कई प्रकार की कल्पनाएं कर रखी है।

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Thursday, 21 December 2017

जो खुदाय महजीद बसतु है, और मुलुक केहि केरा । तीरथ मूरत राम निवासी, दुइमा किनहुँ न हेरा ।। कबीर


जो खुदाय महजीद बसतु है, और मुलुक केहि केरा ।
तीरथ मूरत राम निवासी, दुइमा किनहुँ न हेरा ।।

हिन्दू और मुसलमान मंदिर और मस्जिद को लेकर बड़ा लट्ठमलट्ठ करते रहते हैं । ये दोनों कहीं-कहीं कुछ ईंट-पत्थर के रोड़े जोड़ लेते हैं, और इनके ईश्वर वहां आकर जम जाते हैं फिर चाहे उनको लेकर इन्सान के खून की नदी बहे तो भी इनके ईश्वर वहां से नहीं हटते ।

 ये हिन्दू और मुसलमान के ईश्वर और देवी-देवता कितनी सार्वजनिक जमीनों पर, किन्हीं की व्यक्तिगत जमीनों पर, राहों और सड़कों पर ऐसे जमकर बैठते हैं कि मजाल है इन्हें कोई हटा सके । भले जनता को, राहगीरों को कष्ट हो, परंतु ये वहां से नहीं हटेंगे ।

यदि कहीं सरकार इन्हें हटाना चाहे तो धर्म और इस्लाम खतरे में है कहकर नारे लगाये जाते हैं, सरकार की छवि खराब करने का प्रयत्न किया जाता है । कितने ही मंदिर और मस्जिद इन्सानी-दोस्ती की राह में रोड़े ही नहीं खाई और पर्वत बनकर खड़े हो जाते हैं ।

इतना ही नहीं, इनको लेकर मैदाने-जंग में इंसान का खून भी बहने लगता है । ईश्वर और देवता को रहने की जगह न मिलने से ये दयावान हिन्दू और मुसलमान उनके लिए मंदिर और मस्जिद बनाते हैं तब कहीं बेचारे ईश्वर और देवता अपने सिर छिपाने की जगह पाते हैं ।

साहेब कहते हैं कि यदि खुदा मस्जिद में रहता है तो मस्जिद के बाहर के मुल्क में कौन रहता है? क्या उसमें शैतान रहते हैं? और यदि तीर्थ, मंदिर तथा मूर्तियों में ईश्वर तथा देवता रहते हैं तो उनसे बाहर के संसार में कौन रहता है? इतनी-सी अक्ल लोगों में नहीं आ रही है ।

ईश्वर का असली स्थान न हिन्दू खोजते हैं और न मुसलमान खोजते हैं । जो इन्सान से लेकर सूक्ष्म कीट तक के दिलों में बसा है उसे ये मंदिर-मस्जिद की दीवारों के बीच में बन्द कर देना चाहते हैं ।

Tuesday, 19 December 2017

आत्मबोध ,स्व स्वरूपबोध अथवा मोक्ष कि स्थिति क्या है?


आत्मबोध अथवा स्व स्वरूप स्थिति क्या है?
समाधान - यह जीव सांसारिक प्राणी पदार्थों को पाकर उनमें मोह करता है। लेकिन प्रत्यक्ष में देखने पर पता चलता है कि ये सारे प्राणी पदार्थ एक न एक दिन इससे बिछुड जाते है।इसी प्रकार पूर्व में भोगे हुए भोगों का संस्कार इस जीव के अंतःकरण में जमा रहता है और जब जीव को उनका स्मरण होता है तो उन्हें पुनः भोगने की इच्छा करता है परन्तु उनकी पूर्ति न होने पर दुखी होता है। जब जीव को यह बोध हो जाता है कि संसार के समस्त प्राणी पदार्थ मेरे नहीं है, सारे भोग ऐश्वर्य भी एक दिन छूट जायेगे और मात्र में असंग रह जाउंगा, इस स्थिति में अगर यह जीव समस्त प्राणी पदार्थों एवं भोगों से विरक्त होकर अपने आप में स्थित हो जाता है, तो इस स्थिति को स्व स्वरूप स्थिति कहते है। इस स्थिति में यह जीव समस्त कल्पनाओं और विषय वासनाओं से मुक्त होकर सहज स्थिति में आ जाता है।
सद्गुरू कबीर रमेणी संख्या-51में स्व स्वरूप स्थिति के बारे में चर्चा करते हुए कहते हैं कि -
जाकर नाम अकहुआ रे भाई,
ताकर काह रमैणी गाई।
कहैं तात्पर्य एक ऐसा,
जस पंथी चढि बोहित वैसा।
है कछु रहनि गहनि की बाता,
बैठा रहे चला पुनिः जाता।
रहै बदन नहीं स्वांग सुभाऊ,
मन स्थिर नहीं बोले काहू।
तन राता मन जात है, मन राता तन जाय।
तन मन एकै होय रहे, तब हंस कबीर कहाय।। 51।।
भावानुवाद-
जाकर नाम कथ्यो नहीं जाई।
रंग न रूप वर्ण नहीं जाके, ताकर काह रमैणी गाई।। टेक।।
जैसे पंथी चढे नाव में, खेवन हार न पाई।
बैठा रहै नाव के भीतर, ना कहीं आव न जाई।। 1।।
परमतत्व का भेद निराला, गुण गाये न पाई।
है कछु रहनि गहनि की बाता, सद्गुरू भेद लखाई।। 2।।
जैसी कहै करे पुनिः वैसी, तन मन ऐक रहाई।
"तारा चंद " मिटे दुख सारे, भवसागर तरि जाई।। 3।।
भावार्थ -
हे भाई जिसका नाम ही कथन में नहीं आता है, उसका क्या गुण गाते हो। अज्ञात की प्रार्थना करना तो वैसा औ है, जैसे कोई राहगीर नाव में तो बैठ जाये मगर उसे यह पता ही नहीं हो कि यह नाव कंहा जायेगी और उसका खेवनहार कौन है। वह उसमें बैठा रहे और पुनः उतर कर अपनी राह चल दे।
स्वरूप स्थिति या आत्म शान्ति तो एक रहनि और गहनि की बात है। अगर आचरण शुद्ध है तो जीवन में व्याधियां पैदा ही नहीं होंगी और अगर होगी भी तो स्वतः ही समाप्त हो जायेगी।
जहां तन की आशक्ति होती है वहां मन और जहां मन की आशक्ति होती है वहां तन चला जाता है अर्थात् सारे कर्म तन मन के द्वारा संपन्न होते हैं
जब तन और मन दोनों स्थिर हो जायेगे तो आवागमन अपने आप मिट जायेगा और तब ही यह जीव हंस दशा को प्राप्त होगा।
साहेब बंदगी।

Sunday, 17 December 2017

चादर हो गई बहुत पुरानी, अब तो सोच समझ अभिमानी


चादर हो गई बहुत पुरानी, अब तो सोच समझ अभिमानी ।टेक।


अजब जुलाहा चादर बीनी ,सूत करम की तानी ।

सुरत निरति का भरना दीनीे, तब सबके मन मानी ।।1

मैले दाग पड़े पापन के ,विषयन में लपटानी ।

ज्ञान का साबुन लाय न धोया, सत्संगति का पानी ।।2।।

भई खराब गई अब सारी, लोभ मोह में सानी ।

सारी उमर ओढ़ते बीती , भली बुरी नहीं जानी ।।3।।

शंका मानी जान जिय  अपने , है यह वस्तु बिरानी ।

कहैं  कबीर यहि राखू यतन से , ये फिर  हाथ ना आनी।।4।।

शब्दार्थ :-चादर = शरीर । जुलाहा मन मनवशीजीव । सुरती= मनोवृति । निरति = लिनता ।शंका = संदेह, संशय, भय ।


भावार्थ :- हे जीव।  अनादिकाल से शरीर चादर ओढते ओढते यह बहुत पुरानी हो गई है । इसके ओढने की तेरी तृष्णा अभी भी नहीं मिट रही है । हे मिथ्या देहाभिमानी। अब तो इसकी असारता और दुखरुपता को समझ और इससे छूटने के लिए विचार कर । यह मनवशी जीव अद्भुत जुलाहा है यह कर्मों का सूत कातकर शरीर चादर बनता है।

परंतु किसी को भी संतोष तब होगा जब मन स्थिर होगा जब सूरत निरत का इस शरीर चादर में भरना दिया जाएगा जैसे कपड़ा बुनते समय ताना तान लेने के बाद शुत की आरी आरी भरनी दी जाती है । तब कपड़ा की पूर्णता होती है वैसे ही शरीर धारण की सफलता तब होती है जब सूरति स्वरूप में लीन होती है । सुरति निरति का भरना देना सही है। सूरति आत्मा में निरत हो, लीन हो तब शरीर चादर की सफलता है।

 इस शरीर तथा मन की चादर में विषयासक्तिजनित  पाप एवं मलिनता के दाग लगे हैं , क्योंकि हम सदैव से विषयों में ही लिपटे रहे। हमारी यह भयंकर असावधानी रही है कि हम स्वरूप आत्मज्ञान रूपी साबुन सद्गुरु से लेकर सत्संग के पानी में उसे नहीं धोए।

 यह शरीर चादर खराब होती गई काम क्रोध लोभ आदि में सनकर यह पूरी की पूरी चौपट हो गई है।

 आदमी इतना दम व्यामोहित है कि पूरी उम्र इस शरीर  चादर को ओढते बित जाती है। किंतु वह नहीं समझ पाता कि अच्छा क्या है? और बुरा क्या है? कल्याण क्या है ? अकल्याण क्या है? जीव की अशांति कैसे मीलती है? और शांति कैसे मिलेगी?

 हृदय में यह पक्का समझ लो कि यह शरीर चादर तुम्हारी अपनी नहीं है । यह विजाती है ,नशवान है ,इसलिए सावधान हो जाओ।

 सदगुरु कबीर साहेब कहते हैं कि हे जीव इसको साधना से संयमित रखो तो , शांति का मीठा फल मिलेगा। और जीव को चेताते हुए  कहते हैं  की खबरदार यह आजकल में खो जाएगा फिर हाथ लगने वाली नहीं है ।

विशेष:-- यह स्वस्थ शरीर और यह प्रकृति की सुविधाएं आजकल में छिन जाने वाले हैं । इसलिय शीघ्र किसी सच्चे सद्गुरु  के  पास  जाकर अपने मन इंद्रियों पर संयम कर अपना कल्याण कर लेना चाहिए


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Friday, 15 December 2017

बन्दे जाग भई अब भोर। अज्ञान रुपी निंद्रा में सोए हुए लोगों को जगाते हुए सदगुरु कबीर साहेब

बन्दे जाग भई अब भोर।

 बहुत सोया जन्म खोया ,यहां नहीं कोई तोर।

लोभ मोह अहंकार तृष्णा, संग लिन्हे कोर।।

पछिताहुगे आदि-अंत से ,जइयो कौनी ओर ।

जठर अग्नि सो तोही उबारा ,रक्षा किन्हीं तोड़।।

 एक पलक तुम राम ना सुमरो, बड़ा हरामीखोर।

बार  बार  समुझाई देखा, कहा न मानैे मोर।।

कहे कबीर सुनो हो साधो, ध्रिक जीवन जग तोर।।

:-सतगुरु कबीर साहेब शब्द वाणी

भावार्थ:-माया मोह की नींद में सोए हैं अचेत मनुष्य जाग जा अब तो तेरी दुर्लभ मनुष्य जन्म की ज्ञान मई सुबह हो गई है ।

अनादि काल से जन्म जन्म तू माया मोह की नींद में बहुत सोया और अपना जन्म व्यर्थ ही खोया अब तू सावधान हो जा समझ ले कि यहां तेरा कोई अपना नहीं है।

 लोभ मोह अहंकार एवं तृष्णा आदि विषय दोष तू अपने संग लोध में लिए फिरता है जिनसे तुझे कभी सुख शांति नहीं मिलेगी।

 फिर तू आदि से लेकर अंत तक पछताएगा अपने किए कर्मों को लेकर तू किस ओर जाएगा उनका फल तुझे अवश्य भुगतना पड़ेगा।

 तू बरा कर्महीन और कृतध्न  है, जो बिना धर्म कर्म किए सुखभोग चाहता है । जिसने तुझे मां की गर्भअग्नि से उबारा और हर प्रकार से तेरी रक्षा की उस अंतर्यामी परमात्मा राम जो तेरे अंदर ही विराजमान है का तू एक पल भी सिमरन नहीं करता है।

 भरम भूल में भटके हे मनुष्य ।तुझे बार-बार समझा कर देखा , परंतु तू मेरा कहना नहीं मानता।

 सदगुरु कबीर साहेब जी अंत में कहते हैं  कि हे साधो सुनो ऐसे मनुष्य के जीवन को धिक्कार है जो कल्याणकारी बात को समझाने पर भी नहीं समझता है।

वचन वंश गद्दी रोसरा कबीरपंथ के संस्थापक आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहेब

 वचन वंश गद्दी महादेव मठ रोसरा कबीरपंथ के संस्थापक आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहेब  

सत् कबीर वचनवंश आचार्य गद्दी रोसरा समस्तीपुर बिहार
आचार्य श्री कृष्ण कारख साहेब  जी का जन्म बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले के अंतर्गत परम पवित्र नगरी रोसरा ग्राम में हुआ था जो कि बूढ़ी गंडक नदी के तट पर अवस्थित है !
कृष्ण कारख साहब जी के जन्म वर्ष के संबंध में जो इतिहास में उपलब्ध जानकारी है उसके अनुसार 1792 ई. मे पूज्य आचार्य कारख साहब जी का जन्म हुआ था रोसरा ग्राम की एक व्यापारी बृजमोहन कारक जी के जोकि हिंदू धर्म के सूरी परिवार से आते थे।
पूज्य आचार्य जी के माता जी का नाम लक्ष्मीन था कारख साहब बचपन से हि चतुर और दिव्या धर्मनिष्ठ प्रवृत्ति के बालक थे वह नित्य प्रतिदिन पिता के साथ धर्म संबंधी कार्यों में सहभागी बनते थे जिसको देखकर लोग कहते थे कि यह व्यापारी नहीं बल्कि साधु बन जाएगा!
कृष्ण कारख साहब बचपन से ही जात संप्रदाय जोकि मनुष्य को मनुष्य से अलग करने का काम करती है इसका विरोध करते थे और कहा करते थे कि मानव और जीव सभी एक ईश्वर के अंश है इनमे कोई भिन्नता नहीं है इसलिए हमें सभी जीवो को एक समतामूलक समय्क दृष्टि से देखना चाहिए।
कृष्ण कारख साहब जी की धर्म निष्ठा और विद्वता अपरंपार थी पाखंड और अंधविश्वास से ईतर सत्य समानता पर आधारित उनके अंदर एक आंदोलन का चिंगारी पनप रहा था !
शायद इसी को देख कर सदगुरु कबीर साहब जी ने परम पूज्य आचार्य  कृष्ण कारख साहब जी को 14 वर्ष की अवस्था मे अपना साक्षात्कार बूढ़ी गंडक नदी के किनारे पवित्र ग्राम रोसरा समस्तीपुर जिला बिहार में 1806 ई.  को कराया।
आपको बता दें कि कृष्ण कारख साहब जी के पिता जोकी एक व्यापारी थे और बैल पर अनाज लादकर बेचने का व्यापार करते थे !
उसी व्यापार को कृष्ण कारख साहब भी करते थे परंतु जब आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब जी को सदगुरु कबीर का साक्षात्कार हुआ तब कबीर साहब ने  कारख  साहब जी को बताया कि वह बैल जो उनके साथ विचरण करता है वो कोई और नहीं बल्कि सत्य पुरुष का अंश है।
वचन वंश परंपरा की स्थापना का कारण समाज में फैली हुई जाती और धार्मिक उन्माद और असमानता को समाप्त करके सत्य समानता बंधुत्व और सांप्रदायिक सौहार्द पर आधारित समाज की स्थापना करना था तथा धार्मिक और रूप से एक कारण धनी धर्मदास जी की वंशावली मे काल का झपट्टा मारना भी है !
धनी धर्मदास साहब जी के वंश 42 जो कि सदगुरु कबीर साहब के द्वारा दिया गया 42 पीडी तक गुरुआई का आशीर्वाद था सद्गुरु के भविष्यवाणी के अनुसार धर्मदास जी के छठवी सातवी और तेरवी पिरी को काल  सताएगा और सतपंथ को खंडित करने का प्रयास करेगा उसी समय सदगुरु कबीर सतपुरुष परमात्मा की आज्ञानुसार अपने धर्मदास जी के बिंद वंश परंपरा के समानांतर  वचन वंश परंपरा के रूप में पंथ को प्रकाशित करेंगे!
परम पूज्य धर्मदास साहब जी की वंश परंपरा में सातवे वंशगुरू का  जन्म और दीक्षां काल समय रोसरा गद्दी के आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब जी के जन्म और रोसरा जगह की स्थापना के आस पास है जो कि  सदगुरु कबीर साहब जी की भविष्यवाणी को सत्य साबित करता है
यह कथा और भविष्यवाणी सदगुरु कबीर साहब जी के द्वारा रचित  कबीर सागर ग्रंथ में उपस्थित है!
उसी भविष्यवाणी को सदगुरु कबीर साहब सत्यार्थ चरितार्थ करते हुए  रोसरा जैसी पवित्र नगर में अपने वचन वंश अंश को प्रकाशित करते हैं !
वह वचन वंश अंश सद्गुरु कृष्ण कारख साहब हि थे !
सदगुरु कबीर साहब ने आदि आचार्य कृष्ण कारख साहब जी को सत्य और सत्य भक्ति के सागर दिव्य आध्यात्मिक ज्ञान से  श्री सद्गुरु कृष्ण कारख साहब जी को साक्षात्कार करवाया!
सदगुरु कबीर साहब जी अपने सत्य पंथ वचन वंश परंपरा के आचार्य गद्दी के रूप में रोसड़ा जगह को परिभाषित और उद्घोषित करते है  तथा सत्य पंथ के  विकास और प्रचार प्रसार की बागडोर सद्गुरु कृष्णा कारख साहब को सौंपते है!
सदगुरु कृष्ण कारक साहब और सदगुरु कबीर साहब जी के बीच जो वार्तालाप हुई, वार्तालाप को लिपि बध्ध  किया गया जिसका नाम सदगुरु कबीर साहब जी ने स्वयं अपने मुखारविंद से
"पांजी पंथ प्रकाश "
रखा था जो कि आज भी सत कबीर वचन वंश आचार्य गद्दी  रोसरा मे उपलब्ध है !
वचन बंसी परंपरा से जुड़े संत-महंत और विद्वान लोगों का मानना है कि सदगुरु कबीर साहब ने आदि आचार्य कृष्णा कारख साहब जी को आज्ञा दिया था कि  मिथला राज्य में अपने चार मुख्य मठ स्थापित करो!
सदगुरु कबीर ने कहा की इसकी स्थापना आपके साथ जो बैल है उसके परिभ्रमण के बीच आसन धरने  के अनुसार होगा मतलब की बैल जिस गांव  के  जिस व्यक्ति के दरवाजे पर  बैठेगा वही उस क्षेत्र का धर्म स्थान होगा  और जिस व्यक्ति के दरवाजे पर बैेल बैठेगा वही व्यक्ति मठ का मुखिया होगा महंत होगा!
सद्गुरु के वचना अनुसार कृष्ण कारख साहेब अपने चार धर्म स्थान की स्थापना हेतु भ्रमण के कार्यक्रम को आरंभ करते हैं और रोसरा से प्रस्थान करते हैं!

चलते चलते सबसे पहले बैल हरदिया गांव जिला समस्तीपुर में अपना पद विश्राम हेतु रखता हैं!
साहेब के साथ बैल श्री खुशीयााल साहब उर्फ खाकी साहब जी के दरवाजे पर अपना आसन ग्रहण करते हैं खुशीयाल साहब जाति से मुशहर थे जो कि एक अछूत जाति और शोषित पीड़ित वरग के रूप में गिना जाता है!
तिथि 10 अगहन 1833 इ.
सोचने बाली बात है कि  जिस जाति समाज को हिंदू धर्म के अनुसार धार्मिक विधिशास्त्र और धार्मिक शिक्षा सामाजिक कार्यों में भाग लेने कि  अनुमति नहीं है और  कोई शूद्र इसका उल्लंघन करता है तो वह पाप है अपराध है !
हिंदू धर्म के पाखंड और अंधविश्वास रूपी जातिवादी मनु स्मृति ग्रंथ की जो सिद्धांत थी उसको सीधा ठेंगा दिखाने का काम सद्गुरु कृष्ण कारख साहब ने किया !
मुशहर जाति के एक व्यक्ति को आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब सदगुरु कबीर साहब जी के आशीर्वाद के फलस्वरूप सत्य भक्ति और सत्य पंत का बागडोर उस क्षेत्र के लिए सौंपते है !
हम कह सकते है कि यह अपने आप में अद्वितीय और क्रांतिकारी  सामाजिक परिवर्तन का उदाहरण है जो कि आज से 184 वर्ष पहले सद्गुरु कृष्ण कारक और कबीर साहब जी के द्वारा प्रतिपादित किया किया गया !
प्रथम मठ स्थापना के बाद सद्गुरु कृष्ण कारख साहब और सत्पुरुष परमात्मा अंश बैल जो उनके साथ  विचरण करता था अगले मठ स्थापना के लिए निकल पड़ते हैं ।
चलते चलते ग्राम बिशनपुर जिला दरभंगा के परम पूज्य संत मो.कादिर बख्श साहब जी की आंगन में अपने चरणों को विश्राम हेतु उपस्थित करते हैं !
परम पूज्य संत कादीर बक्स साहब उर्फ मींया  साहब जाति से शेख थे और धर्म से मुसलमान थे साहेब दिनांक 13 अगहन 1833 ई. विशनपुर मठ की स्थापना करते हैं और पूज्यनीय मीयां साहब को सत्य भक्ति प्रदान करते हुए कबीर पंथ के वचन वंश परंपरा को प्रचारित करने का दायित्व देते हैं और मठ के मठाधीश के रूप में नवाजते है।
यहां पर भी सोचने वाली बात है कि सदगुरु कबीर के सिद्धांतों के अनुरूप संप्रदाय का भेद भाव समाप्त करने हेतु धर्म में मतभेद को समाप्त करने हेतु एक मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को कबीर पंथ का दायित्व देना और मठाधीश बनाना यह भी अपने आप में एक क्रांतिकारी सामाजिक समता, सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना का प्रतीक है !
कबीर पंथ  के क्रांतिकारी संत मो.कादिर बखश उर्फ मियां साहब जी को साहिब बंदगी साहिब बंदगी !
सदगुरु कबीर साहब जी का सत्य पंथ का घोड़ा कारख साहब जी को लेकर अपने अगले मठ की स्थापना के लिए बिशनपुर ग्राम से प्रस्थान करता है !
चलते चलते निशिहारा गोरा ग्राम जिला दरभंगा पहुंचते हैं और परम पूज्य वचन वंश प्रतापी संत आचार्य देवदत्त साहब जी के दरवाजे पर अपना आसन ग्रहण करते हैं !
देवदत्त शाहब जाति से राजपूत थे और अत्यंत ऊर्जावान प्रतापी व्यक्तित्व के धनी थे आचार्य कृष्ण कारख साहब जी ने देवदत्त साहब जी को सत्य भक्ति का साक्षात्कार कराया तथा सत्य भक्ति सत्य पंथ के प्रचार प्रसार का जिम्मेवारी दिया !
इस तरह आदि आचार्य कृष्ण कारख साहब  नीशीहारा गौरा मठ की स्थापना करते हुए देवदत्त साहब को मठाधीश के रूप में नवाजते है !
यहां पर भी सोचने वाली बात है तथाकथित हिंदू धर्म जो कि मनुवादी सिद्धांत के अनुसार बना है जिसमें राजपूत का धर्म राज पाठ देखना और जनता की रक्षा करना तक सीमित है ! उसे धर्म का अधिकारी होना नहीं चाहिए ऐसा मनुस्मृति में लिखा है !
तो सदगुरु कबीर साहब जी के आशीर्वाद स्वरुप कृष्ण कारख साहब जी ने मनुवादी सिद्धांतों को तोड़ते हुए एक राजपूत को धर्माधिकारी बनाकर आधुनिक वर्ग विहीन समाज की रचना का उदाहरण दिया !
जैसा की हम  सभी जानते है कि  सदगुरु कबीर की वाणी और उनका पंथ स्वयं में एक क्रांति का प्रतीक है उसी क्रांति को आगे बढ़ाने का काम वचन वंश प्रतापी सद्गुरु कृष्ण कारख साहब जी ने किया !
वचन वंश प्रतापी आचार्य देवद्त साहब जी को  धर्माधिकारी बनाते हुए परम पूज्य श्री कृष्ण कारख साहब जी का सत्य पंथ का घोडा आगे चलता है अपने अगले मठ की स्थापना हेतु!
चलते चलते सदगुरु कबीर साहब जी का सत्य भक्ति और वचन वंश का घोड़ा नवला ग्राम जिला सहरसा में अपना पावन चरण रखता  है ! और उसी ग्राम के परम पूज्य आचार्य सनफुल साहब जी के दरवाजे पर अपना आसन ग्रहण करते हैं आचार्य सनफूल साहब जी ग्वाला यादव समाज के थे ।
सदगुरु कबीर साहब जी के आज्ञा अनुसार श्रीकृष्ण कारख साहब जी ने संत श्री सनफूल साहब जी को सत्य भक्ति का साक्षात्कार कराया और नाम पान मतलब पान चौंका दिया साथ हि सत्य भक्ति सतपंथ वचन बंश का क्षेत्रअधिकारी भी  नियुक्त किया!
इस तरह से सद्गुरु कृष्ण कारख साहब जी ने नवला धर्म स्थान की स्थापना करते हुए परम पूज्य संत सनफुल साहब जी को मठाधीश के रूप में सुशोभित किया।
नवला धर्म स्थान से अन्दामा धर्म स्थान जिला दरभंगा की स्थापना हुई है वचन वंश के इस परंपरा में गृहस्थ आश्रम गुरु मठ और गृहस्थ मठाधीश की परंपरा नवला धर्म स्थान से शुरू हुई और अभी तक चल रही है वहां भी धनी धर्मदास जी के वंशावली के जैसे ही वंशावली चलती  है।
इस तरह से सद्गुरु कृष्ण कारख साहेब जी ने सदगुरु कबीर साहब जी की आज्ञानुसार सत्य पंत और सत्य भक्ति का प्रचार प्रसार करने हेतू मिथिला प्रदेश में 4 धर्म स्थानों की स्थापना करते हैं !
पांजी पंथ प्रकाश
में सदगुरु कबीर साहब कहते हैं कि हे कृष्णा दास कारख आपकी वचन वंश परंपरा में सैकड़ों शाखाएं होंगी और उसके हजारों पर शाखाएं होंगे यदि ऱोसरा आचार्य गद्दी वचन वंश परंपरा का नियम और कानून सभी शाखाएं पर शाखाएं निभाती रहेंगी तो सभी तड जाएंगी सभी को सत्य लोक का आसन मिलेगा !
कबीरपंथ के विकास में वजन वंश परंपरा आचार्य गद्दी रोसरा का बहुत ही बड़ा योगदान है! जिसको इतिहासकार  और आधुनिक लेखकों ने दरकिनार किया है उस ओर ध्यान नहीं दिया है !
वचन वंश परंपरा कबीर पंथ का वह परंपरा है जिसमें जाति धर्म संप्रदाय का विखंडन का मूल तत्व उपलब्ध है जैसा की चार मुख्य धर्म स्थानों के मठाधीशों के समाज धर्म और जाति को देख कर पता चलता है!
सदगुरु कबीर साहब जी के मानवतावादी सिद्धांतों पर आधारित कबीर पंथ का वचन वंश परंपरा वाकई में मानव को मानव से जोड़ने का और मानव के मुख्य उद्देश्य को प्राप्त करने का एक बहुत बड़ा साधन है !
वचन वंश परंपरा में किसी भी मूर्ति चित्र का पूजा वर्जित है इस परंपरा में साक्षात सद्गुरु स्वरूप गुरु की पूजा की जाती है मतलब जिंदा गुरु  की पूजा की जाती है!
हम अपने आदि आचार्य तथा सभी संत-महंत जनों को इस महान वचन वंश परंपरा को जीवित रखने के लिए कोटि कोटि धंयवाद देते हैं।
मैं अब अंत में अपने आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब ,सत्पुरुष परमात्मा स्वरूप सदगुरु कबीर साहब जी के साथ वचन वंश परंपरा और कबीरपंथ के सभी संत महंत आचार्य गुरु जन के चरणो में साहिब बंदगी  अर्पित करता हू।

सद्गुरू कबीर साहेब जी के द्वरा भूत-प्रेत मंत्र-तंत्रादि का खंडन

भूत-प्रेत मंत्र-तंत्रादि का खंडन 


यह भूत-प्रेत की कल्पना जो जंगली-युग की देन है, आज भी इससे मनुष्य का पिंड नहीं छूटा है l अशिक्षित और अल्प-शिक्षित ही नहीं चारों वेद, छहों शास्त्रों के विद्वान एवं अंग्रेजी आदि कई भाषाओं के पंडित भी उसी प्रकार नादान हैं l अंधविश्वास और भ्रांतिधारणा में पंडित और मूढ़ एक समान हैं l मिथ्या विश्वास में पड़े हुए अनपढ़ जितना नादान है, पढ़ा-लिखा भी उतना ही l अशिक्षित तो केवल मिथ्याविश्वास को मन में जमाये रहता है; परन्तु शिक्षित अनेक युक्तियों तथा वैज्ञानिक हथकण्डों से मिथ्या धारणाओं को सत्य सिद्ध करता है l

भूत-प्रेत की योनि होती, तो उनके बाल बच्चे देखने में आते l उनके विवाह-शादी के रस्मोरिवाज तथा उनके व्यवहार-धंधा का भी पता लगता l उनके मरने पर उनकी लाशें भी देखने को मिलतीं, परन्तु यह सब कुछ नहीं दिखता l सद्गुरु कबीर कहते हैं “यह भूत का भ्रम सब लोगों को भटका रहा है l जो मिथ्या भूत-प्रेतों के मानने और पूजने वाले हुए वे सब अपने को अन्धविश्वास के गड्ढे में गिराये l भूत के न सूक्ष्म शरीर है न प्राण और न जीव l यह केवल कल्पना और भ्रांति का रूप है l करोड़ों-करोड़ों लोग इस मिथ्या विश्वास में सिर पटक रहे हैं l हे मनुष्य, तू मिथ्या भूत की पुजाई में बकरी-मुरगियों के गला काटता है; परन्तु ध्यान रख, इसका बदला तुझे मिलेगा l हे मनुष्यों, भूत को मानने और पूजने से तुम्हारे मन में भूत-प्रेत बने हैं, वास्तविकता में उसका कोई अस्तित्व नहीं है l’’

जीव के साथ लगे हुए सूक्ष्म शरीर में केवल संस्कारों को ग्रहणकर गमनागमन कराने की शक्ति है l केवल सूक्ष्म शरीर युक्त जीव दूसरे को तब तक सुख-दुःख नहीं दे सकता जब तक वह स्थूल शरीर न धारण करे l और स्थूल शरीर जीव जहाँ भी धारण करेगा वहां वह सबके सामने प्रत्यक्ष होगा l भूत भैंसा-हाथी आदि के शरीर संकल्प मात्र से धारण करके लुप्त हो जाता है यह अनाड़ियों द्वारा फैलाया हुआ भ्रम है l जहां दिन में भूत-प्रेत नहीं हैं वहां रात में कहां से आ जायेंगे ? अपने मन में शंका होने से एकांत में भय उत्पन्न होता है जो अपने मन का ही विकार है l मन:कल्पना को छोड़कर भूत का कोई अस्तित्व नहीं है l

लोग कहते हैं कि मैंने भूत-प्रेत देखे हैं l वस्तुतः कभी-कभी दृष्टि-दोष, धुंधुलका आदि के कारण कुछ-का-कुछ दिख जाता है l वह भूत नहीं केवल भ्रम है l प्रेत का अर्थ जो जीव शरीर को छोड़कर चला गया और कुछ समय बीत जाने पर वही भूत (बीता हुआ) हो गया l भूत-प्रेत कोई योनि नहीं l
पुत्र-धन की प्राप्ति के लिए, रोग कटने के लिए, दूसरे मनुष्य को वश में करने के लिए तथा हानियों से बचने के लिए सोखा-ओझा, बैगा-गुनिया के पास झड़वाना-फुंकवाना पूर्ण अज्ञान है l ये सोखा-ओझा लोग भभूत आदि में फूंकते और थूकते हैं और वही भभूत लोग चाटते हैं जो महाअशुद्ध है l झाड़ने-फूंकने से कुछ नहीं होता l एक मनोवैज्ञानिक असर पड़ना अलग बात है l परन्तु इससे अच्छा तो यह है कि भूत-प्रेत, झाड़-फूंक माना ही न जाये, तो उसी प्रकार के कष्ट ही नहीं होंगे l कोई कष्ट होगा तो उसकी निवृत्ति संयम, चिकित्सा एवं विवेक से की जायेगी l

सांप-बिच्छु के काट-छेद लेने पर झाड़-फूंक करवाना भी अल्पज्ञता ही है l क्योंकि विष द्रव्य होता है जो रक्त के साथ घुल जाता है l वह छू मंतर करने से कैसे दूर हो जायेगा ! जहां झाड़-फूंक से सर्प या बिच्छू का विष उतरता हुआ प्रतीत हो, वहां समझना चाहिए की सांप-बिच्छू जहरीले नहीं थे, या झाड़ने वाले ने झाड़-फूंक के साथ कोई दवाई का प्रयोग किया है l सांप-बिच्छू काटने छेदने पर कटी जगह में तुरन्त आपरेशन करना चाहिए और फिर दवा करना चाहिए l झाड़-फूंक बिलकुल अज्ञानमूलक है l

मंत्र शब्दमय है, यंत्र पदार्थमय तथा तंत्र टोटका को कहते हैं l अभिप्राय यह है कि किसी प्रकार की शब्दयोजना मंत्र है, षटकोण, अष्टकोण आदि बनाकर ताबीज आदि में पहनाते हैं यह यंत्र है और गेहूं के आटे का मनुष्य पिंड बनाकर उसे जला देने पर आदमी मौत से बच जायेगा आदि टोटका है l ये तीनों केवल भ्रम है l राय, सम्मति, उपदेश आदि मंत्र है और ये काम करते हैं l छूमंतर का कोई मतलब नहीं होता l

जादू-टोना भी इसी प्रकार झूठे हैं l हाथ की सफाई, बात की सफाई, वस्तु की बनावट, दवाई आदि से जादूगर कुछ-का-कुछ दिखाते हैं l उनके हथकंडे होते हैं जो हम समझ नहीं पाते l मंत्र से वे कुछ भी नहीं बना सकते l इसे वे स्वयं भी बताते हैं l कोई स्त्री या पुरुष दूसरों को टोना मार देते हैं, जिससे लोगों के खून कट-कट कर गिरने लगते हैं, यह मानना भी केवल भ्रम है l टोना नाम की कोई चीज नहीं l इस प्रकार भूत-प्रेत, झाड़-फूंक, मंत्र-तंत्र-यंत्र, जादू-टोना सब मन:कल्पना की सृष्टि है, अतएव इन भ्रांतियों से रहित होना चाहिए l सद्गुरु कहते हैं –


मंत्र तंत्र सब झूठ है, मत भरमो जग कोय l
सारशब्द जाने बिना, हंसा गया बिगोय ll

#कहत_कबीर

Wednesday, 13 December 2017

सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप



साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।

जाके हृदया साँच है, ताके हृदया आप ।।


सत्य पालन के समान तपस्या नहीं है और झूठ के समान पाप नहीं है । जिसके हृदय में सत्य की प्रतिष्ठा है, उसके हृदय में व्यक्ति का स्वराज्य है ।।

लम्बा-लम्बा उपवास, पंचाग्नितापन, जलशयन, मौनव्रत, नंगा रहना, वन में कठिनाई का जीवन बिताना, इसी प्रकार अन्य अनेक तपस्याएं हैं, परन्तु सत्य के पालन के समान दूसरी तपस्या नहीं है ।

सत्यभावना, सत्यसिद्धांत, सत्यवचन तथा सत्याचरण पालन करने में चाहे जितनी कठिनाइयां पड़ें, उन्हें सहर्ष सहना ही तपस्या है । भय और प्रलोभन में पड़कर जो सत्य को छोड़ देता है वह कहीं का भी नहीं रह जाता । अनेक लोगों को देखा जाता है कि उन्हें लम्बी बीमारियों में घोरातिघोर कष्ट उठाना पड़ता है, फिर यदि सत्य के लिए कष्ट उठाना पड़े तो क्या हर्ज है । मौत सभी देहधारियों की निश्चित है और यदि सत्य के पालन में मौत हो तो यह कितना ऊँचा काम है ! सत्य के समान न संसार के माने गये सुख हैं, न पद-प्रतिष्ठा हैं और न अन्य कुछ । यदि सत्य छोड़ देना पड़े तो शरीर भी रखकर किस काम का ! अतएव सच्चाई में रहना ही सबसे बड़ी तपस्या है । सत्यपरायण व्यक्ति बाहर से भले ही अकिंचन दिखे, परन्तु भीतर से वही संपन्न होता है । सत्यपरायण व्यक्ति जीवन में सच्चा सुख पाता है । जो व्यक्ति सत्य में रहता है वह कोई पाप नहीं कर सकता, फिर उसके समान तपस्वी और सफल जीवन कौन होगा !

"झूठ बराबर पाप" झूठ के बराबर पाप नहीं होता । जो झूठ बोलता है वह कौन-सा पाप नहीं कर सकता ! जो व्यक्ति जितना ही झूठ का आश्रय लेता है वह उतना ही परमार्थ से तो दूर हो ही जाता है, उसका व्यवहार भी थोड़े दिनों में भ्रष्ट हो जाता है । झूठा आदमी सबका अविश्वासपात्र हो जाता है । झूठाई के बल पर कोई तत्काल धन-मकान को चमका सकता है, परन्तु वह भीतर से मलिन हो जाता है और उसकी बाहरी चमक-दमक भी थोड़े दिनों में बुझ जाती है । झुठाई के रास्ते पर चलने का मतलब है दूसरों को पीड़ा देना, और दूसरों को पीड़ा देकर कोई स्वयं पीड़ा से मुक्त नहीं हो सकता ।

"जाके हृदया साँच है, ताके हृदया आप ।" यह बड़ी वजनदार बात है । जिसके हृदय में सत्य है उसके हृदय में अपने आप की प्रतिष्ठा है । शिष्य ने पूछा की सत्य क्या है ? गुरु ने कहा कि व्यक्ति अपने आप ही परम सत्य है । व्यक्ति का बाहरी खोल तो असत्य है, अर्थात् शरीर नाशवान है, परन्तु शरीर के भीतर विद्दमान चेतन परम सत्य है । जो सत्य को खोजता है वह चेतन जीव ही परम सत्य है । जो व्यक्ति अपने सत्यस्वरूप का ज्ञान पा गया है और जीवन के सारे व्यवहार सत्यमय बरत रहा है वह अपने आप कृतकृत्य होता है । अपने स्वरूप का अज्ञान तथा असत्य में मोह होने से ही सारे दुख थे । जब निजस्वरूप का बोध हो गया और असत्य मायाजाल से मोह टूट गया तब जीव अपने सत्य स्वरूप चेतन में प्रतिष्ठित हो गया । यही जीवन की सर्वोच्च दशा है । यही "जाके हृदया साँच है, ताके हृदया आप" का भाव है । जब जीव असत्य से सर्वथा हट गया, तब स्वयं सत्यस्वरूप रह गया ।

(बीजक व्याख्या, साखी - 343)

#सद्गुरु_श्री_कबीर_साहेब


कबीर पंथ के वचन वंश परंपरा के 11वें महंत आचार्य गुरु राज नारायण साहिब को कबीर पंथ का महा सम्मेलन आयोजित कर श्रद्धांजलि दी गई


सत् कबीर वचनवंशीय मूल आचार्य गद्दी रोसरा के द्वारा आचार्य गुरु राज नारायण साहेब जी के सत्यलोकगमन होने के उपरांत उनको श्रद्धांजलि देने के लिए सत् कबीर वचन वंश आचार्य गद्दी तथा कबीर पंथ के आचार्य गुरु संत महन्थ हंस जनों का महासम्मेलन आयोजित किया गया।

  कबीर पंथ का विशाल संत महासम्मेलन का कार्यक्रम यह सत् कबीर वचन वंश आचार्य गद्दी के द्वारा संचालित  संत कबीर महा विद्यालय रोसड़ा में किया गया।


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संत कबीर रामजीवन सामाजिक शोध संस्थान के संस्थापक तथा वचन वंश के वरिष्ठ महंत आचार्य डा.विद्यानंद शास्त्री जी ने
आचार्य राज नारायण साहिब जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि आचार्य गुरु राज नारायण साहेब कबीर पंथ के एक क्रांतिकारी नायक थे।


आचार्य विद्यानंद शास्त्री साहेब ने कहा कि सदगुरु कबीर के क्रांतिकारी विचारों को समाज के जन जन तक पहुंचाने के लिए।
गुरु राज नारायण साहेब ने जो त्याग और समर्पण के साथ काम किया वह कबीर पंथ के इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगा ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वचन वंश के वरिष्ठ आचार्य विद्यानंद शास्त्री साहिब 


महासम्मेलन को संबोधित करते हुए आचार्य विद्यानंद शास्त्री साहेब ने कहा कि सदगुरु कबीर के विचार आज भी प्रासंगिक है परंतु उनका सपना अधूरा है।
क्योकी हमारा समाज आज भी सामाजिक विषमता, सांप्रदायिकता, अंधविश्वास ,जात पात  ,छुआछूत और धार्मिक  पाखंडो से भरा हुआ है।
यदि हमें इन सामाजिक कुरीतियों को दूर करते हुए  एक समतामूलक और संप्रदायिकताविहीन समाज की स्थापना करना है ।
तो हमें सतगुरु कबीर साहेब के क्रांतिकारी विचारों को स्वीकार करना होगा और उनके सपने को साकार करना होगा ।

महासम्मेलन मे सामिल होते हूए देश विदेश से आए हुए संत महंत हंश जनो ने आदरणीय परम पूज्य आचार्य गुरु राज नारायण साहेब जी को श्रद्धांजलि दी ।
इस महा सम्मेलन के मुख्य अतिथि परम पूज्य रोसरा बगाईचा मठ के आचार्य गुरु दीप नारायण साहिब थे तथा अध्यक्षता वचन वंश के वरिष्ठ आचार्य डॉक्टर विद्यानंद शास्त्री साहेब ने कि।
आचार्य गुरु राज नारायण साहेब जी के महापरिनिर्वाण दिवस के उपरांत उनको श्रद्धांजलि  अर्पित करने के लिए आयोजीत।
वचन वंश के आदि आचार्य गुरु श्री कृष्ण कारक साहब जी को सदगुरु कबीर साक्षात्कार द दते हुए


कबीर पंथ के इस महासम्मेलन में  लाखों की संख्या में देश-विदेश से पहुंचे कबीर पंथ के संत महंत और हंश जनों ने आचार्य राज नारायण साहेब जी को श्रद्धांजलि दी ।
तथा उनको उनको कबीरपंथ के महान वचन वंश परंपरा के विकास के लिए उनके द्वारा किए गए अतुलनीय अमूल्य कार्यों को याद किया गया ।
साहेब बन्दगी ...सह

गुरु मोहिं सजीवन मूर दई :- धनि धरमदास साहेब

गुरु मोहिं सजीवन मूर दई ।।टेक।। कान लागी गुरु दीक्षा दिन्हीं । जनम-जनम को मोल लई।।1।। दिन दिन अवगुण छुटन लागे । बाढन लागी प्रीति न...