Wednesday, 3 January 2018

गुरु मोहिं सजीवन मूर दई :- धनि धरमदास साहेब


गुरु मोहिं सजीवन मूर दई ।।टेक।।

कान लागी गुरु दीक्षा दिन्हीं ।
जनम-जनम को मोल लई।।1।।

दिन दिन अवगुण छुटन लागे ।
बाढन लागी प्रीति नई ।।2।।

मानिक शुभ से मानिक उपजै।
हीरा हंश से भेंट भई ।।3।।

धर्मदास बिनबै करजोरी ।
 दिल की दुर्मति दूर भई।।4।।

भावार्थ :-
गुरु मोहिं सजीवन मूर दई ।।टेक।।
अर्थ:-सदगुरु ने मुझे संजीवनी बूटी दी हैं अनंत आत्मिक जीवन का बोध दिया है ।।टेक।।

कान लागी गुरु दीक्षा दिन्हीं ।
जनम-जनम को मोल लई।।1।।
अर्थ:- गुरु दीक्षा में सद्गुरु ने मेरे कान में आत्मबोध का अमृत उडेल दिया और उन्होंने मुझे जीवन भर के लिए खरीद लिया।।1।।

दिन दिन अवगुण छुटन लागे ।
बाढन लागी प्रीति नई ।।2।।
 अर्थ:-सद्गुरु की शरण में आते ही मेरे जीवन के दुर्गुण दिन-ब-दिन नष्ट होने लगे और सद्गुरु संत लोगों तथा आत्मा उद्धार के लिए मेरे मन में नया-नया प्रेम उत्साह बढ़ने लगा ।।2।।

मानिक शुभ से मानिक उपजै।
हीरा हंश से भेंट भई ।।3।।
अर्थ:-सदगुण रूपी रत्न से अन्य सद्गुण रत्न उत्पन्न होने लगे आत्म ज्ञान रुपी हिरा देने वाले विवेकी सद्गुरु से भेंट हो गई।।3।।

धर्मदास बिनबै करजोरी ।
 दिल की दुर्मति दूर भई।।4।।
 अर्थ:-धनी धर्मदास साहेब करबद्ध होकर वन्दगी करते हुए कहते हैं कि हे सद्गुरु आपके द्वारा आत्मबोध ,सत्पुरूष का बोध तथा सत्य से मिलने से हृदय की दुरबुद्धी  दूर हो गई।।4।।

विशेष:- सदगुरु ने मुझे दीक्षा दी सद्ज्ञान  का बोध दिया और वह मानो जीवन भर के लिए मुझे खरीद लिए।

 ''जन्म जन्म को मोल लई ''

यह शब्द बताते हैं कि कैसा कोमल स्वच्छ सत्पात्र हृदय था श्री धनी धर्मदास साहेब का अद्भुत अद्वितीय ।

''दीन दीन अओगुण छुटन लागे।
 बाढन लागी प्रीति नई ।।

कितना उत्तम और व्यवहारिक अनुभव है उनका और हम लोगों के लिए कितना प्रेरणाप्रद है ।

सद्गुरु शरण का अंतिम फल है हृदय की कुमति का नष्ट हो जाना जिसकी दुर्बुद्धि मिट गई वह सदैव के लिए सुखी हो गया।

Monday, 1 January 2018

गुरु मोहिं खूब निहाल कियो। धनि धरमदास साहेब वाणी


गुरु मोहिं खूब निहाल कियो। टेक।

 बूरत जात रहे भवसागर पकड़ी के बांहि लियो।।1।।

 14 लोक बसे जम चोदह उन्हों से छोरि लियो।।2।।

तिनूका तोरि दिलों परवाना माथे हाथं  दियो।।3।।

नाम सुना दियो कंठी माला, माथे तिलक दियो।।4।।

 धर्मदास बिनवै कर जोरी ,पूरा लोक दियो।।5।।

भावार्थ:-

सतगुरु ने मुझे पूर्ण कृतार्थ कर दिया जीवनमुक्ति कर दिया!! टेक!!

मैं मन के अथवा काल के भवसागर से डूबता उतराता अनादि काल से जन्म मरण के प्रभाव में बह रहा था।
 सदगुरु ने उससे मुझे वैसे ही निकाल दिया जैसे किसी अथाह सागर में डूबते हुए मनुष्य को किसी दयालु पुरूष ने उसका हाथ पकड़कर उसे निकाल दिया हो ।।1।।

संपूर्ण जीवजाति  वासना मनोविकार वस अनंत सागर संसार में भटकता है वासना मनोविकार ही यमराज है उसी के पंजे में पड़े सब जीव दुखी  हैं। सद्गुरु ने मुझे वासना मनोविकार काल रचित प्रपंच के पंजे  से छुड़ा लिया ।।2।।

तिर्ण को तोड़ कर फेंक देना जैसे सरल है वैसे सदगुरु ने ऐसा आत्मबोध दिया कि मानो उन्होंने संसार शक्ति रूपी बंधन को लकरी कि तिनका के समान तोड़ फेका और अविनाशी आत्मा स्थिति की प्रमाणिकता पर मुझे स्थित कर दिया।
 उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखकर निर्भय कर दिया।।3।।

 सतनाम सुनाकर तथा सत्य स्वरूप सतपुरूष  का बोध देकर ,भक्ति वेश कंठी माला भी पहनाए और अटल न्याय का चिन्ह मेरे मस्तक पर तिलक लगाया।।4।।

 धनी धर्मदास साहेब करबद्ध होकर सद्गुरु से विनम्रता पूर्वक उनका आभार प्रदर्शन करते हैं । हे सद्गुरु आपने मुझे अक्षय ,अमरत्व लोक आत्मालोक ,सत्यलोक में प्रतिष्ठित कर दिया।।5।।

गुरु मोहिं सजीवन मूर दई :- धनि धरमदास साहेब

गुरु मोहिं सजीवन मूर दई ।।टेक।। कान लागी गुरु दीक्षा दिन्हीं । जनम-जनम को मोल लई।।1।। दिन दिन अवगुण छुटन लागे । बाढन लागी प्रीति न...